कुछ ख्वाब थे सदियों के
मेरी रूह में पलते हुए
तेरी साँसों की महक से
एक लौ से धधकते हुए
इल्म था न सच होती है
सपने के हर मुस्कराहट
भूल के बैठा था मन
तेरे आने की आह्ट
क्या देखा तेरी आँखों में
जो ये फिर उमड़ आये
तेरी यादों की नमी की
ओस ने जो सहलाये
आँखों में झाँका तो
यह मंज़र नज़र आया
जिए थे हर जनम संग
उस हकीक़त का साया
सपना कहूं कैसे तुझे
हम जिए हैं जो संग संग
है तू ही सच मेरा जो
तेरी आखों में मेरा रंग
मीठी , प्यारी सी कविता !!
ReplyDeleteक्या देखा तेरी आँखों में
ReplyDeleteजो ये फिर उमड़ आये
तेरी यादों की नमी की
ओस ने जो सहलाये......
behad bahut khoobsurat...
shukriya!
सपना कहूं कैसे तुझे
ReplyDeleteहम जिए हैं जो संग संग
है तू ही सच मेरा जो
तेरी आखों में मेरा रंग
आपकी कविता मन को छू सी गई । आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।