Monday, October 10, 2011

सच का रंग

                                         
 कुछ ख्वाब थे  सदियों के  
मेरी रूह  में पलते   हुए
तेरी साँसों की महक से
एक लौ से धधकते हुए
 
 इल्म था न सच होती है
सपने के हर मुस्कराहट
भूल के बैठा था मन
तेरे आने की आह्ट
 
क्या देखा तेरी आँखों में
जो ये फिर उमड़ आये
तेरी यादों की नमी की 
ओस ने जो सहलाये
 
आँखों में झाँका तो
यह मंज़र नज़र आया
जिए थे हर जनम संग
उस हकीक़त का साया
 
सपना कहूं कैसे तुझे
हम जिए हैं  जो संग  संग 
है तू ही सच मेरा जो
 तेरी आखों में मेरा रंग

3 comments:

  1. मीठी , प्यारी सी कविता !!

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  2. क्या देखा तेरी आँखों में
    जो ये फिर उमड़ आये
    तेरी यादों की नमी की
    ओस ने जो सहलाये......

    behad bahut khoobsurat...
    shukriya!

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  3. सपना कहूं कैसे तुझे
    हम जिए हैं जो संग संग
    है तू ही सच मेरा जो
    तेरी आखों में मेरा रंग
    आपकी कविता मन को छू सी गई । आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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